(भारत व चीन के पूर्व संबंधों पर एक नजर):-
- भारत-चीन दोनों पड़ोसी एवं विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों के बीच लम्बी सीमा-रेखा है। इन दोनों में प्रचीन काल से ही सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्बन्ध रहे हैं।
- चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात् नालंदा विश्वविद्यालय एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय को चुना था क्योंकि उस समय संसार में अपने तरह के यही दो विश्वविद्यालय शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। उस काल में यूरोप के लोग जंगली अवस्था में थे।
- वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये।
- इस तरह भारत, चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने वाला प्रथम गैर-समाजवादी देश बना।
- वर्ष 1954 के जून माह में चीन, भारत व म्यामार द्वारा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धान्त यानी पंचशील प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान था।
- इन सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु निम्न लिखित है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान किया जाये।
- एक-दूसरे पर आक्रमण न किया जाये।
- एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाये।समानता व आपसी लाभ के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाये।
- परन्तु चीन नें मैत्री सम्बन्धों को ताख पर रख कर, भारत के साथ धोखा किया और 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत की बहुत सारी जमीन पर कब्जा करते हुए 21 नवम्बर 1962 को एकपक्षीय युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
- उस समय से दोनों देशों के सम्बन्ध आज-तक सामान्य नहीं हो पाये हैं।
- जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने चीन से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया, परन्तु भारत को सफलता नहीं मिली, क्योंकि चीन ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अन्यायपूर्ण ढंग से पाकिस्तान का एकतरफा सर्मथन किया था। 23 सितम्बर 1965 को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का समझौता हो गया इसके बाद चीन के सारे मन्सूबों पर पानी फिर गया।
- गद्दार पाकिस्तान ने भारत के शत्रु को शक्तिशाली और समृद्ध बनाने के लिए चीन को काराकोरम क्षेत्र में बसा दिया एवं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) का 2600 वर्ग मील भू–भाग भी चीन को सौप दिया।
- इसके बाद चीन के राष्ट्रपति "जियांग जोमीन" ने नवम्बर 1966 में तीन दिन की भारत यात्रा की थी। (यह चीन के राष्ट्रपति द्वारा की गई पहली यात्रा थी)
- इस यात्रा के दौरान एक एतिहासिक समझौता किया गया, जिसके अर्न्तगत वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर एक दूसरे द्वारा आक्रमण नही करने का वचन दिया गया। दोनों देशों ने अपने सैनिक बल का प्रयोग न करने का एवं हिमालय के झगड़े वाली सीमा पर शान्ति व्यवस्था बनायें रखने का समझौता किया, इस यात्रा के समय 11 सूत्रीय समझौता किया गया।
- 70 के दशक के मध्य तक भारत और चीन के सम्बन्ध शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। जनवरी 1980 से चीन ने कुछ नरमी प्रदर्शित की जिसके फलस्वरूप भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार की आशा व्यक्त की गई लेकिन चीन सुधरने वालों में से नहीं था।
- उसने फिर सन् 1998 में दोनों देशों के मध्य पुनः तनाव पैदा कर दिया। भारत ने 11 से 13 मई 1998 के मध्य पाँच परमाणु परीक्षण कर अपने आप को शस्त्र धारक देश घोषित किया था।
- इसी दौरान भारत के रक्षामन्त्री रहें श्री जॉर्ज फर्नाण्डीस ने चीन को भारत का सबसे बड़ा शत्रु (एन्मी नम्बर वन) की संज्ञा दे डाली थी जिससे चीन की मानसिकता अचानक परिवर्तित हो गयी। चीन ने अमेरिका एवं अन्य देशों के साथ मिलकर एन०पी०टी० एवं सी०टी०बी०टी० पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत को बाध्य करना प्रारम्भ कर दिया।
- 5 जून 1998 को चीन के द्वारा दबाव बनाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा परीक्षण बन्द करने, शस्त्र विकास कार्यक्रम बन्द करने एवं सी०टी०बी०टी० पर तथा एन०पी०टी० पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव पास करा दिया।
- अक्टूबर 1998 में चीन ने अटल बिहारी वाजपेई की दलाई लामा के साथ मुलाकात की आलोचना की और इसे 'चीन के विरूद्ध तिब्बत-कार्ड का प्रयोग' कहा।
- मई 2000 में भारत के राष्ट्रपति के• आर• नारायण ने चीन की यात्रा कर दोनों देशों के सभी हितकर मुद्दे पर वार्तालाप की तथा भारत नें चीन के साथ द्विपक्षीय आर्थिक एवं व्यापार सम्बन्धों में वृद्धि करने के लिए प्रयास करने की प्रतिबद्धता प्रकट की, लेकिन सीमा विवाद पर कोई निष्कर्षजन्य बात नहीं हो पायी।
- वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग ने भारत की यात्रा की, इसके बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री "वन चा पाओ" के साथ चीन-भारत सम्बन्धों के सिद्धान्त और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय सम्बन्ध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय सम्बंधों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया।
- परंतु इसके बावजूद भी चीन आज तक अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और वह लगातार भारत पर कब्जा करने की रणनीति बनाता रहता है,
- उपरोक्त से स्पष्ट है कि भारत और चीन का सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है।
Coming soon:-
श्री नरेंद्र मोदी जी की ओर से पड़ोसी देशों के साथ वार्तालाप तथा संबंध
By CEO & Counsellor :- PANKAJ JANGID (Author, Science expert and mathematician)
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1 टिप्पणियाँ
Very good helpful topic.
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