भारत का इतिहास | प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत (History of India | sources of ancient indian history)

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-:प्राचीन भारत:-

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत:-

भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। समयानुसार भारत देश अनेक नामों से जाना जाता रहा है। यूनानियों ने भारत को इंडिया कहा तो अरब, इरानियों ने हिन्दुस्तान। मत्स्यपुराण में भारत के 9 भाग बताए गए हैं-इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्णी त्रआंस्तिमा, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, वारुष तथा सागर ।

  • जैनियों ने भारत को जम्बूद्वीप कहा है। माना जाता है, कि राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। विदेशों में भारतवर्ष की चर्चा एक समृद्ध और सुसंस्कृत देश के रूप में हुई है।
  • भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण रहा है। परंतु दुर्भाग्यवश हमें अपने प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी सामग्री बहुत कम मिलती है।।
  • प्राचीन भारतीय साहित्य में ऐसे ग्रंथों का प्रायः अभाव सा है, जिन्हें आधुनिक परिभाषा में इतिहास की संज्ञा दी जाती है। भारतीय इतिहास को जानने के लिए इसे मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
  • (1) साहित्यिक साक्ष्य (2) विदेशी यात्रियों के विवरण एवं (3) पुरातत्त्व संबंधी साक्ष्य


साहित्यिक साक्ष्य :-

  • साहित्यिक साक्ष्य के अंतर्गत साहित्यिक ग्रंथों से प्राप्त सामग्रियों का अध्ययन किया जाता है। यह दो प्रकार के है :- धार्मिक साहित्य एवं लौकिक साहित्य।

धार्मिक साहित्य:-

  • धार्मिक साहित्य के अंतर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर ग्रंथों की चर्चा की जा सकती है।
  • ब्राह्मण ग्रंथों के अंतर्गत वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रंथ आते हैं। ब्राह्मणेत्तर साहित्य के अंतर्गत बौद्ध तथा जैन साहित्य से संबंधित रचनाओं का उल्लेख किया जाता है।
  • वेद:- यह भारत का सर्वप्राचीन धर्म ग्रंथ है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्णाद्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है।
  • प्राचीन काल के अध्ययन की समस्त जानकारी हमें वेदों से ही उपलब्ध हो पाती है।
  • वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। इन चारों वेदों को संहिता कहा जाता है।
  • ऋग्वेद न केवल भारतीय आर्यों की, बल्कि समस्त आर्य जाति की प्राचीनतम रचना है। विद्वानों के अनुसार इसकी रचना आयों ने पंजाब में की थी। 
  • चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद में 10 मण्डल, 8 अष्टक, 10,600 मंत्र एवं 1028 सूक्त है।
  • ऋग्वेद का रचना काल सामान्यतः 1500 ई. पू. से 1200 ई. पू. के बीच माना जाता है। 
  • ऋग्वेद का दूसरे से सातवां मण्डल तक सर्वाधिक प्राचीन तथा पहला एवं दसवां मण्डल सबसे बाद का है।
  • ऋग्वेद के नौवे मंडल को सोम मंडल भी कहा जाता है।
  • ऋग्वेद की मान्य 5 शाखाएँ है :- शाकल, आश्वलायन,माण्डूक्य,शंखायन एवं वाष्कल।
  • ऋग्वेद के 10 वें मण्डल के पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है।
  • प्रसिद्ध गायत्री मंत्र (सावित्री) का उल्लेख ऋम्वेद में मिलता है। 
  • सामवेद को भारतीय संगीत का मूल कहा जाता है। इसमें मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। सामवेद में कुल 1549 त्रृच्चाएँ हैं। इनमें मात्र 78 ही नयी हैं, शेष ऋग्वेद से ली गयी है।

-:वैदिक पुरोहित:-

     पुरोहित - वेद
  • होता- ऋग्वेद के पुरोहित
  • उद्गाता - सामवेद के पुरोहित
  • अध्वर्य - यजुर्वेद के पुरोहित 
  • ब्रह्मा - अथर्ववेद के पुरोहित

-:वेदांग एवं उनकी विशेषताएँ:-

    वेदांग - विशेषता
  • छंद - वेद के पैर
  • क्लप - वेद के हाथ
  • ज्योतिष - वेद की आँखें
  • निरुक्त - वेद के कान
  • शिक्षा - वेद के नाक
  • व्याकरण - वेद के मुख

  • इस वेद की तीन मुख्य शाखाएँ है:- जैमिनीय, राणायनीय तथा कौथुम।
  • सामवेद में मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र है।
  • यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है। यह एकमात्र ऐसा वेद है, जो पद्य एवं गद्य दोनों ही भाषा में लिखा गया है।
  • इस वेद के दो भाग हैं:- कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद 
  • कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ है:- तैत्तिरीय, काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी।
  • शुक्ल यजुर्वेद की प्रधान शाखाएँ माध्यन्दिन तथा काण्व है।
  • शुक्ल यजुर्वेद के संहिताओं के रचयिता वजसनेयी के पुत्र याज्ञवल्क्य हैं, इसलिए इसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है। इसमें केवल मंत्रों का समावेश है।

-:कल्पसूत्र के प्रकार:-

     सूत्र - विशेषता
  • श्रौत सूत्र - यज्ञ संबंधी नियमों का उल्लेख
  • गृह सूत्र - मनुष्यों के लौकिक तथा पारलौकिक कर्तव्यों से संबंधित
  • धर्म सूत्र - सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक कर्त्तव्यो का उल्लेख
  • शुल्य सूत्र - बलि वेदी और अग्नि वेदी का उल्लेख

  • अथर्ववेद में सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासो का विवरण मिलता है. इसमें कुल 20 मण्डल, 731 ऋचाएं तथा 5987 मंत्र है।
  • अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है।
  • उपनिषद्:- इसका शाब्दिक अर्थ है, समीप बैठना। इसमें आत्मा परमात्मा एवं संसार के संदर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
  • उपनिषद वेदों का अंतिम भाग है। इसे वेदान्त भी कहा जाता है।
  • उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
  • प्रमुख उपनिषद हैं:-  ईश, कठ, केन, मुण्डक, माण्डुक्य प्रश्न, ऐतरेय, तैत्तिरीय छान्दोग्य, वृहदारण्यक, श्वेताश्वर, कौषितकी एवं मैत्रायणी।
  • प्रसिद्ध राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
  • आरण्यक:- यह ब्राह्मण ग्रंथों का अंतिम भाग है, जिसमें दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन है। इनकी रचना वनों में पढ़ाये जाने के निमित्त की गयी। 
  • प्रमुख आरण्यक है- ऐतरेय, शंखायन, तैत्तिरीय, वृहदारण्यक, जैमिनी, छान्दोग्य।
  • वेदांग:- वेदों को भली-भांति समझने के लिए छः वेदांगों की रचना की गई है। ये वेदों के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायक थे। 
  • पुराण:- पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है।
  • पुराणों की संख्या 18 है। अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी-चौथी शताब्दी ईस्वी में की गई थी।
  • रामायण:- यह आदि काव्य है, जिसकी रचना दूसरी शताब्दी के लगभग संस्कृत भाषा में वाल्मीकि द्वारा की गई थी। प्रारंभ में इसमें 6000 श्लोक थे जो कालांतर में 24000 हो गए। इसे चतुर्विंशति साहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।
  • महाभारत:- इस महाकाव्य की रचना चौथी शताब्दी के लगभग महर्षि व्यास द्वारा की गई थी। प्रारंभ में इसमें 8,800 श्लोक थे, जिसे जयसंहिता कहा जाता था, तत्पश्चात् इसमें श्लोकों की संख्या 24,000 हो गई और इसे भारत कहा जाने लगा। कालांतर में इसमें श्लोकों की संख्या एक लाख हो जाने पर महाभारत या शतसाहस्त्री संहिता कहा जाने लगा। महाभारत का प्रारंभिक उल्लेख आश्वलायन गृहसूत्र में मिलता है।
  • सूत्र:- इस साहित्य की रचना ई. पूर्व छठी शताब्दी के आस-पास की गई थी। सूत्र ग्रंथों को कल्प भी कहा जाता है।

-:स्मृतियाँ एवं उनके वर्ष:-

    स्मृतियाँ - वर्ष
  • मनुस्मृति - 200 से 200 ई.पू.
  • याज्ञवल्क्य स्मृति - 100 से 300 ई.
  • नारद स्मृति - 300 से 400 ई.
  • पराशर स्मृति - 300 से 500 ई.
  • बृहस्पति स्मृति - 300 से 500 ई.
  • कात्यायन स्मृति - 300 से 600 ई.

  • कल्प सूत्र:- ऐसे सूत्र जिनमें नियमों एवं विधि का प्रतिपादन किया जाता है, कल्पसूत्र कहलाते हैं। षड्दर्शन:- उपनिषदों के दर्शन को भारतीय ऋषियों ने छ भागों में विभाजित किया है जिसे षड्दर्शन कहा जाता है। इसमें आत्मा, परमात्मा, जीवन और मृत्यु से संबंधित दार्शनिकता का वर्णन है।
  • स्मृतियां:- वेदाग और सूत्रों के बाद स्मृतियों का उदय हुआ। इसे धर्मशास्त्र भी कहा जाता है।
  • सबसे प्राचीन स्मृति मनुस्मृति है।
  • मनुस्मृति के भाष्यकार क्रमश: है- मेघातिथि, भारुचि, कुल्लूक, भट्ट तथा गोविंद राय।
  • याज्ञवल्क्य स्मृति के भाष्यकार क्रमश: है- अपरार्क, विश्वरूप एवं विज्ञानेश्वर।

लौकिक साहित्य:-

  • लौकिक साहित्य के अंतर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रंथों तथा जीवनियों का उल्लेख किया गया है जिनसे भारतीय इतिहास जानने में काफी मदद मिलती है।
  • कौटिल्य (चाणक्य) रचित अर्थशास्त्र से मौर्यकालीन इतिहास एवं शासन व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
  • ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वाधिक महत्त्व कश्मीरी कवि कल्हण द्वारा विरचित राजतरंगिणी का है।
  • अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनी की अष्टाध्यायी, कात्यायन को वर्तिका, गार्गीसंहिता, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत का मुद्राराक्षस तथा कालिदास कृत मालविकाग्निमित्र आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
  • पाणिनी तथा कात्यायन के व्याकरण ग्रंथों से मौर्यों के पूर्व का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है।
  • गार्गीसंहिता यद्यपि एक ज्योतिष ग्रंथ है तथापि इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
  • ऐतिहासिक जीवनियों में अश्वघोष के बुद्धचरित वाणभट्ट का हर्षचरित, वाक्पति का गौड़वहो, विल्हण का विक्रमांकदेवचरित, पद्मगुप्त का नवसाहशांकचरित, जयानक कृत पृथ्वीराज विजय इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

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By CEO & Counsellor :-  PANKAJ JANGID (Author, Science expert and mathematician)
Posted by co-founder & managing director:- Rahul Vishvkarma