प्रत्यास्थता (Elasticity) :-
- प्रत्यास्थता पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्त उस पर लगाये गये बाह्य बल से उत्पन्न किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करती है तथा जैसे ही बल हटा लिया जाता है, वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आ जाती है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:-
- रबड़ की अपेक्षा इस्पात अधिक प्रत्यास्थ होती है क्योंकि रबड़ की अपेक्षा इस्पात बाह्य बल से उत्पन्न होने वाले परिवर्तन का अधिक विरोध करती है।
- शुद्ध लोहा लचीला होता है, प्रत्यास्थ नहीं जबकि इस्पात में प्रत्यास्थता व लचीलापन दोनों गुण पाए जाते हैं।
- तांबा एक तन्य धातु है तथा सोना सबसे अधिक तन्य होता है।
विरूपक बल:-
- किसी वस्तु पर कार्यरत वह बाह्य बल जो उस वस्तु की पूर्व स्थिति को बदल दें या बदलने का प्रयास करें, विरूपक बल कहलाता है।
प्रत्यास्थता की सीमा (Elastic limit):-
- विरूपक बल के परिमाण की वह सीमा जिससे कम बल लगाने पर पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण बना रहता है तथा जिससे अधिक बल लगाने पर पदार्थ का प्रत्यास्थता का गुण समाप्त हो जाता है, प्रत्यास्थता की सीमा कहलाती है।
विकृति (Strain):-
- किसी तार पर विरूपक बल लगाने पर उसकी प्रारंभिक लम्बाई L में वृद्धि l होती है, तो-
विकृति = l/L
- अर्थात, किसी तार पर विरूपक बल लगाने पर उसमें होने वाली वृद्धि तथा तार की प्रारंभिक लंबाई के अनुपात को विकृति कहते हैं।
- नोट- विकृति एक प्रकार का अनुपात है इसलिए इसका कोई मात्रक नहीं होता है।
प्रतिबल (Stress):-
- प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगाये गए बल को प्रतिबल कहते हैं।
- यदि किसी वस्तु का क्षेत्रफल A तथा उस पर कार्यरत बल F है तो-
प्रतिबल(P) = बल (F)/क्षेत्रफल (A)
प्रतिबल का SI मात्रक-
- Nm-² (न्यूटन/मीटर2 ) या पास्कल होता है तथा इसकी विमा [ML-1T-2] होती है।
- प्रतिबल एक सदिश राशि है।
यह भी देखे-
By CEO & Counsellor :- PANKAJ JANGID (Author, Science expert and mathematician)
Posted by co-founder & managing director:- Rahul Vishvkarma


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