कार्य-

जब किसी वस्तु पर पर बल लगाया जाता है तो उस वस्तु में विस्थापन उत्पन्न होता है।
वस्तु पर लगाये गए बल तथा बल के कारण उत्पन्न विस्थापन के अदिश गुणनफल को ही वस्तु पर किया गया कार्य कहते है।
1. यदि वस्तु पर F बल लगाने से बल की दिशा में S विस्थापन उत्पन्न हो जाता है, तो बल द्वारा उस वस्तु पर किया गया कार्य W होगा-
W = F.S 

Work-and-energy


2. यदि वस्तु पर F बल, θ कोण से लगाया जाता है जिससे वस्तु में क्षैतिज में S विस्थापन उत्पन्न होता है तो किया गया कार्य-
W = F.Scosθ

Work-and-energy

कार्य एक अदिश राशि है तथा इसका S.I मात्रक जूल होता है तथा C.G.S पद्धति में मात्रक अर्ग होता है।
1 जूल = 10^7 अर्ग अर्थात,
एक जूल- 10 की घात 7 अर्ग के बराबर होता है।

कार्य की विशिष्ट स्थिति-

1.यदि बल और विस्थापन दोनों एक ही दिशा में हो तो यहाँ θ = 0 होगा अत: कार्य सर्वाधिक होगा।
क्योंकि cos 0° का मान सर्वाधिक होता है।
2. यदि बल और विस्थापन विपरीत दिशा में हो तो यहाँ θ = 180 डिग्री होगा अर्थात कार्य ऋणात्मक होगा।
क्योंकि cos 180° का मान ऋणात्मक होता है।
3. यदि बल और विस्थापन लम्बवत हो तो यहां θ = 90 डिग्री होगा अर्थात कार्य का मान शून्य होगा।
क्योंकि cos 90° का मान शून्य होता है।

ऊर्जा-

किसी वस्तु द्वारा कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है।
ऊर्जा एक अदिश राशि है तथा इसका S.I मात्रक भी जूल होता है।
कार्य द्वारा प्राप्त ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है।
जो दो प्रकार की होती है-
(i)गतिज ऊर्जा
(ii) स्थितिज ऊर्जा।

गतिज ऊर्जा:- 

किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने की क्षमता को  उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते हैं।
गतिज ऊर्जा (KE)=1/2 mv²

स्थितिज ऊर्जा:- 

किसी वस्तु में उसकी स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता को  उस वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।स्थितिज ऊर्जा(PE)=mgh
जहां-

  • m = द्रव्यमान
  • g = गुरुत्वीय त्वरण
  • h = ऊंचाई
  • v = वस्तु का वेग

यह भी देखे-
Posted by co-founder & managing director:- Rahul Vishvkarma)